Powered By Blogger

Friday, February 7, 2014

मुखौटा




ये वो नहीं …और वो जो है , वो वैसा नहीं है जैसा दिख रहा है !!!

 मुखौटा लगा रखा है यहाँ सबने। 

मुखौटा के पीछे छिपा चेहरा या तो सुन्दर , या फिर कुरूप हो सकता है।

सच्चाई  बताने या सच्चाई छिपाने , विशवास जीतने या विशवास  तोड़ने ,घबरा कर या मज़ाक में ,

ना जाने किस कारण, लगा रखा है मुखौटा लोगो ने।  

परत दर परत मुखौटा अपनी पकड़ मजबूत बना लेता है लोगो के चहरे पर। 

फिर अपनी छाप भी लगता है ये मुखौटा। 

यदि सच जानने की हिम्मत है ,तो ही मुखौटा के पीछे छुपे असली चेहरा देखने की  कोशिश करना ,

वर्ना ये मुखौटा लगे लोगो के साथ ही जीये। 




Monday, January 6, 2014

बेचारा अज्जू



कुछ दिनों पूर्व हमारे परिचित त्रिपाठी जी सपरिवार घर पधारे.परिवार में मात्र तीन सदस्य ,त्रिपाठी जी ,उन की पत्नी और अज्जू उन का १० साल का बेटा। 

आते ही त्रिपाठी जी  बोले, "आज तो हम आप के पास काम से आये हैं"

अब यह भी कोई कहने की बात है क्या , आज कल कोई किसी के पास बैगर काम के जाता है क्या ?

श्रीमति त्रिपाठी ने हमारे कान मे फुसफुसाते हुए कहा, "यह अज्जू किसी की सुनता ही नहीं ,आप तो स्कूल टीचर है न,एक से एक शरारती बच्चो को ठीक किया होगा ,ज़रा इसे भी समझाइये ना "


श्रीमति त्रिपाठी का यह कथन हमारी समझ से परे था , बच्चे को तो माँ बाप भी समझा सकते हैं। 

इसी बीच त्रिपाठी जी बोले ,"सभी जगह से इस कि एक ही शिकायत सुनने को मिलती  है  कि ये 'सुनता नहीं' घर मे हम लोगों की ,स्कूल मे टीचर की सुनता ही नहीं. अभी से यह हाल है तो बड़े हो कर तो हमे देखेगा भी नहीं. पता नहीं क्या हो गया है आज कल के बच्चो को ?"

"अरे नहीं ..." हमने बोलना शुरू ही किया था कि  हमारी बात बीच में ही काटते  हुए श्रीमति त्रिपाठी ने अपना दुःख  व्यक्त किया,"अज्जू का रिपोर्ट कार्ड लेने "ये" तो जाते नहीं, मै जाती हूँ तो सभी टीचर्स मुझ से ही शिकायत करते हैं.अपनी नानी के यहाँ गया,तब वहां  भी इस ने मेरी एक भी बात पर ध्यान नहीं दिया ."ये" तो मेरी तकलीफे समझते नहीं बल्कि मुझे ही डाँटते है कि सब तुम्हारे ही लाड प्यार  का नतीजा है ."

त्रिपाठी जी इतना सुनते ही भड़क गए ,"अरे ! गलती तो तुम्हारी ही है.जब देख रही हो कि बेटा बिगड़ रहा है,तो कुछ तो करना ही होगा ना,अब मैं कुछ बोलू भी नहीं क्या ? वैसे  भी तुम मेरी बात  "सुनती"  कहाँ हो ."
त्रिपाठी जी को ये गवारा नहीं था कि उन की बीबी उन पर इलज़ाम लगाये . मेरी तरफ देखते हुवे दीन स्वर मे बोले , "मेरी तो घर में  कोई "सुनता " ही नहीं .अब ये हमारा अज्जू ,बहार खेलने के बजाय दिन भर कंप्यूटर या मोबाइल  पर गेम खेलता रहता है.रोटी से ज्यादा अच्छा इसे पिज्जा,बर्गर  लगता है ,हरी सब्जी से तो इसे नफरत है .अब क्या बताए  आपको, जब कहता हूँ कि अज्जू ,बेटा ये करो या वो करो तो ये सुनता ही नहीं."


हमने त्रिपाठी दम्पति की समस्या बड़े ही ध्यान से सुनी,हमे लगा की अब समय आ गया है जब हम अपनी सूझ भुझ से समस्या का निवारण करें . फिर त्रिपाठी परिवार आया ही इसिलए है.
इसी मकसद से हमने अज्जू से बात करना शुरू किया "अच्छा तो अज्जू........."

हमारी बात काटते हुए त्रिपाठी जी बोले, " अरे आप मेरी बात पूरी तो होने दीजिये "

'कमाल है !!!!! तो अभी तक बात ख़त्म नहीं हुई थी ',हमने मन ही मन सोचा ,पर प्रत्यक्ष में कहा, "  बोलिए ." 

"ये क्या बोलेंगे ,आप मेरी बात सुनिए ",श्रीमति त्रिपाठी ने आँखे नचाते  हुवे कहा.

अब हम क्या कहते , हम तो जैसे सब की बात सुनने के लिए ही बैठे थे .

"सारी जिम्मेदारी क्या अकेले मेरी ही है ?"श्रीमति त्रिपाठी ने हम से पूछा .

"अरे नहीं ...."हमे ने उन के प्रशन का जवाब देना चाह पर 
 श्रीमति त्रिपाठी ने हमारी बात अनसुनी कर दी .फिर वो त्रिपाठी जी की तरफ देखते हुए बोलीं,"पढाई  में तो 'अज्जू के पापा' आप भी मेरी मदद कर सकते हैं ना ."

'अज्जू के पापा '  चुप...अज्जू चुप....हम !!!   हम  भी  चुप...

अज्जू  ने तो अब तक एक शब्द भी नहीं बोला था,वैसे देखा जाए तो हमने भी कुल मिला कर कोई दस ही शब्द  बोले होंगे.

"अज्जू सुन रहे हो ना ." श्रीमति त्रिपाठी अपने बेटे का धयान अपनी ओर खिचना चाह.
  
हमने बच्चे की तरफ देखा ,उसे तो इन सब बातो से कोई सरोकार ही नहीं था.चुपचाप नीच मुंह किये बैठा था . 

हमने बोलने की फिर कोशिश की , "अज्जू देखो मम्मी कुछ ...."

"मैंने कहा ना ये किसी की "सुनता" ही नहीं " अज्जू के पापा फिर कूद  पड़े बीच  में .

"तो आप कहा हमारी बात सुनते है ??" श्रीमति त्रिपाठी ने त्रिपाठी जी से पुछा .

"अच्छा !!! मैं ....मैं नहीं सुनता कि  तुम माँ  बेटा  नहीं सुनते ?"

समस्या विकट थी ,गहन अध्यन की आवश्यकता थी, यह जानने के लिए की कौन किस की नहीं  सुनता....हमे तो मालूम होता था की त्रिपाठी दम्पति किसी की नहीं सुनते .हम ने तो बोलने की कोशिश ही छोड़ दी त्रिपाठी दम्पति के  सामने .

कभी चुप ना रहने वाले त्रिपाठी जी ने हमे उलहना दिया ,"अरे ! आप तो कुछ बोल ही नहीं रहीं ? बोलिए  ना कुछ अज्जू को "

अपने पुराने  बोलने के विफल प्रयासों को भुलाते हुए बोलने के लिए फिर से मुँह खोला ही था ,पर हमारे शब्द किसी के कानो तक पहुँच पाते की उस से पहले त्रिपाठी जी के शब्द गूँज उठे ,"अब आप भी क्या  कर सकती हैं ,यह अज्जू किसी की सुनता ही नहीं है."

'जी नहीं अज्जू नहीं , आप दोनों किसी की नहीं सुनते  ' हमारा मन किया की हम  जोर से यह बात बोलो,पर जले भुने चुप ही रह गए .

और अपनी आदत के अनुसार कभी  ना चुप रहे वाले त्रिपाठी जी दार्शनिक  अंदाज़  बोले ," भगवान ने मनुष्य को एक मुंह और दो कान इसीलिए दीए  हैं कि वह ज़्यादा सुने और बोले कम ."
 हमे तो अपने कानो पर यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि त्रिपाठी जी ,जो  किसी को अपने सामने बोलने का मौका नहीं देते , उन के यह सुविचार  है .
त्रिपाठी जी  ने आगे कहा  "पर आज कल यह  बात समझता ही कौन है ? सब बस यही चाहते हैं कि वो बोले और दुसरे सुने .मैं अपने बच्चे को यह शिक्षा देना चाहता हूँ की सब की सुनो .सुनने से ज्ञान बड़ता  है ."

जी हां- सुनने से ज्ञान बढता है , पर हमें अपने कानो पर यकीन ही नहीं हो रहा था की ये त्रिपाठी जी के सुविचार है. शायद ही त्रिपाठी जी ने अपने सामने किसी को बोलने का मौका दिया होगा (श्रीमति त्रिपाठी को "किसी " में शामिल न करे)...... लेकिन ये बात उन्हें कौन समझाए ? हम तो बिलकुल भी नही समझाने वाले पूजनीय त्रिपाठी जी को।  

उन्होंने हमे देखा  ,"क्यों सही कहा ना मैंने ?"
हम ने केवल सर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी ( इस के सिवा हम कर भी क्या सकते थे )

" बहुत देर हो गई ,अब चलना चाहिए "श्रीमति त्रिपाठी ने कहा। 

हम ने कुछ नहीं  कहा ,वैसे कहने की जरुरत ही नहीं थी। 
त्रिपाठी दम्पति जैसे  लोग किसी की "सुनते " ही नही हैं। 
ऐसे लोग सिर्फ बोलना जानते हैं ,सुनना नहीं।

 अज्जू का कोई कसूर नहीं ,वो चाहा के भी नहीं बोल सकता ,उसे कोई सुनने वाला चाहिए ,कोई समझने वाला।  

ये केवल अज्जू  नही आज के हर व्यक्ति  की समस्या हैं।  बोलना और सुनाना सब चाहते हैं पर सुनना नहीं। 





बेचारा अज्जू



कुछ दिनों पूर्व हमारे परिचित त्रिपाठी जी सपरिवार घर पधारे.परिवार में मात्र तीन सदस्य ,त्रिपाठी जी ,उन की पत्नी और अज्जू उन का १० साल का बेटा। 

आते ही त्रिपाठी जी  बोले, "आज तो हम आप के पास काम से आये हैं"

अब यह भी कोई कहने की बात है क्या , आज कल कोई किसी के पास बैगर काम के जाता है क्या ?

श्रीमति त्रिपाठी ने हमारे कान मे फुसफुसाते हुए कहा, "यह अज्जू किसी की सुनता ही नहीं ,आप तो स्कूल टीचर है न,एक से एक शरारती बच्चो को ठीक किया होगा ,ज़रा इसे भी समझाइये ना "


श्रीमति त्रिपाठी का यह कथन हमारी समझ से परे था , बच्चे को तो माँ बाप भी समझा सकते हैं। 

इसी बीच त्रिपाठी जी बोले ,"सभी जगह से इस कि एक ही शिकायत सुनने को मिलती  है  कि ये 'सुनता नहीं' घर मे हम लोगों की ,स्कूल मे टीचर की सुनता ही नहीं. अभी से यह हाल है तो बड़े हो कर तो हमे देखेगा भी नहीं. पता नहीं क्या हो गया है आज कल के बच्चो को ?"

"अरे नहीं ..." हमने बोलना शुरू ही किया था कि  हमारी बात बीच में ही काटते  हुए श्रीमति त्रिपाठी ने अपना दुःख  व्यक्त किया,"अज्जू का रिपोर्ट कार्ड लेने "ये" तो जाते नहीं, मै जाती हूँ तो सभी टीचर्स मुझ से ही शिकायत करते हैं.अपनी नानी के यहाँ गया,तब वहां  भी इस ने मेरी एक भी बात पर ध्यान नहीं दिया ."ये" तो मेरी तकलीफे समझते नहीं बल्कि मुझे ही डाँटते है कि सब तुम्हारे ही लाड प्यार  का नतीजा है ."

त्रिपाठी जी इतना सुनते ही भड़क गए ,"अरे ! गलती तो तुम्हारी ही है.जब देख रही हो कि बेटा बिगड़ रहा है,तो कुछ तो करना ही होगा ना,अब मैं कुछ बोलू भी नहीं क्या ? वैसे  भी तुम मेरी बात  "सुनती"  कहाँ हो ."
त्रिपाठी जी को ये गवारा नहीं था कि उन की बीबी उन पर इलज़ाम लगाये . मेरी तरफ देखते हुवे दीन स्वर मे बोले , "मेरी तो घर में  कोई "सुनता " ही नहीं .अब ये हमारा अज्जू ,बहार खेलने के बजाय दिन भर कंप्यूटर या मोबाइल  पर गेम खेलता रहता है.रोटी से ज्यादा अच्छा इसे पिज्जा,बर्गर  लगता है ,हरी सब्जी से तो इसे नफरत है .अब क्या बताए  आपको, जब कहता हूँ कि अज्जू ,बेटा ये करो या वो करो तो ये सुनता ही नहीं."


हमने त्रिपाठी दम्पति की समस्या बड़े ही ध्यान से सुनी,हमे लगा की अब समय आ गया है जब हम अपनी सूझ भुझ से समस्या का निवारण करें . फिर त्रिपाठी परिवार आया ही इसिलए है.
इसी मकसद से हमने अज्जू से बात करना शुरू किया "अच्छा तो अज्जू........."

हमारी बात काटते हुए त्रिपाठी जी बोले, " अरे आप मेरी बात पूरी तो होने दीजिये "

'कमाल है !!!!! तो अभी तक बात ख़त्म नहीं हुई थी ',हमने मन ही मन सोचा ,पर प्रत्यक्ष में कहा, "  बोलिए ." 

"ये क्या बोलेंगे ,आप मेरी बात सुनिए ",श्रीमति त्रिपाठी ने आँखे नचाते  हुवे कहा.

अब हम क्या कहते , हम तो जैसे सब की बात सुनने के लिए ही बैठे थे .

"सारी जिम्मेदारी क्या अकेले मेरी ही है ?"श्रीमति त्रिपाठी ने हम से पूछा .

"अरे नहीं ...."हमे ने उन के प्रशन का जवाब देना चाह पर 
 श्रीमति त्रिपाठी ने हमारी बात अनसुनी कर दी .फिर वो त्रिपाठी जी की तरफ देखते हुए बोलीं,"पढाई  में तो 'अज्जू के पापा' आप भी मेरी मदद कर सकते हैं ना ."

'अज्जू के पापा '  चुप...अज्जू चुप....हम !!!   हम  भी  चुप...

अज्जू  ने तो अब तक एक शब्द भी नहीं बोला था,वैसे देखा जाए तो हमने भी कुल मिला कर कोई दस ही शब्द  बोले होंगे.

"अज्जू सुन रहे हो ना ." श्रीमति त्रिपाठी अपने बेटे का धयान अपनी ओर खिचना चाह.
  
हमने बच्चे की तरफ देखा ,उसे तो इन सब बातो से कोई सरोकार ही नहीं था.चुपचाप नीच मुंह किये बैठा था . 

हमने बोलने की फिर कोशिश की , "अज्जू देखो मम्मी कुछ ...."

"मैंने कहा ना ये किसी की "सुनता" ही नहीं " अज्जू के पापा फिर कूद  पड़े बीच  में .

"तो आप कहा हमारी बात सुनते है ??" श्रीमति त्रिपाठी ने त्रिपाठी जी से पुछा .

"अच्छा !!! मैं ....मैं नहीं सुनता कि  तुम माँ  बेटा  नहीं सुनते ?"

समस्या विकट थी ,गहन अध्यन की आवश्यकता थी, यह जानने के लिए की कौन किस की नहीं  सुनता....हमे तो मालूम होता था की त्रिपाठी दम्पति किसी की नहीं सुनते .हम ने तो बोलने की कोशिश ही छोड़ दी त्रिपाठी दम्पति के  सामने .

कभी चुप ना रहने वाले त्रिपाठी जी ने हमे उलहना दिया ,"अरे ! आप तो कुछ बोल ही नहीं रहीं ? बोलिए  ना कुछ अज्जू को "

अपने पुराने  बोलने के विफल प्रयासों को भुलाते हुए बोलने के लिए फिर से मुँह खोला ही था ,पर हमारे शब्द किसी के कानो तक पहुँच पाते की उस से पहले त्रिपाठी जी के शब्द गूँज उठे ,"अब आप भी क्या  कर सकती हैं ,यह अज्जू किसी की सुनता ही नहीं है."

'जी नहीं अज्जू नहीं , आप दोनों किसी की नहीं सुनते  ' हमारा मन किया की हम  जोर से यह बात बोलो,पर जले भुने चुप ही रह गए .

और अपनी आदत के अनुसार कभी  ना चुप रहे वाले त्रिपाठी जी दार्शनिक  अंदाज़  बोले ," भगवान ने मनुष्य को एक मुंह और दो कान इसीलिए दीए  हैं कि वह ज़्यादा सुने और बोले कम ."
 हमे तो अपने कानो पर यकीन ही नहीं हो पा रहा था कि त्रिपाठी जी ,जो  किसी को अपने सामने बोलने का मौका नहीं देते , उन के यह सुविचार  है .
त्रिपाठी जी  ने आगे कहा  "पर आज कल यह  बात समझता ही कौन है ? सब बस यही चाहते हैं कि वो बोले और दुसरे सुने .मैं अपने बच्चे को यह शिक्षा देना चाहता हूँ की सब की सुनो .सुनने से ज्ञान बड़ता  है ."

जी हां- सुनने से ज्ञान बढता है , पर हमें अपने कानो पर यकीन ही नहीं हो रहा था की ये त्रिपाठी जी के सुविचार है. शायद ही त्रिपाठी जी ने अपने सामने किसी को बोलने का मौका दिया होगा (श्रीमति त्रिपाठी को "किसी " में शामिल न करे)...... लेकिन ये बात उन्हें कौन समझाए ? हम तो बिलकुल भी नही समझाने वाले पूजनीय त्रिपाठी जी को।  

उन्होंने हमे देखा  ,"क्यों सही कहा ना मैंने ?"
हम ने केवल सर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी ( इस के सिवा हम कर भी क्या सकते थे )

" बहुत देर हो गई ,अब चलना चाहिए "श्रीमति त्रिपाठी ने कहा। 

हम ने कुछ नहीं  कहा ,वैसे कहने की जरुरत ही नहीं थी। 
त्रिपाठी दम्पति जैसे  लोग किसी की "सुनते " ही नही हैं। 
ऐसे लोग सिर्फ बोलना जानते हैं ,सुनना नहीं।

 अज्जू का कोई कसूर नहीं ,वो चाहा के भी नहीं बोल सकता ,उसे कोई सुनने वाला चाहिए ,कोई समझने वाला।  

ये केवल अज्जू  नही आज के हर व्यक्ति  की समस्या हैं।  बोलना और सुनाना सब चाहते हैं पर सुनना नहीं।