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Sunday, February 6, 2011

तलाश जारी है.........


खाली समय का सदुपयोग करने के लिए हमने लिखना शुरू किया .धीरे धीरे हमे लिखने का शौक लग गया.सुना था कि एक बार लिखने का शौक लग गया तो जीवन भर साथ नहीं छोड़ता.फिर हमे तो ये शौक ताज़ा ताज़ा ही लगा था !! बड़े ही आत्म विश्वास व जोश से कलम उठा कर हमने अपनी भावनाओ को कागज़ पर व्यक्त करना शुरू कर दिया.कही पढ़ा था क़ि -यदि आप लेखक बनाना चाहते है तो आप के पास होना चाहिए कागज़ ,कलम और खाली समय.यह सारी चीज़े हमारे पास प्रचुर मात्र में उपलब्ध है. कागज ,कलम तो सभी के पास मिल ही जाता है ,पर खाली समय -यह तो भगवान की इच्छा से ही नसीब होता है.  
                                                                                       
अक्सर  लिखना वाला अपने आप को लेखक/लेखिका समझ ही लेता है.हमे भी अपने अंदर उच्चकोटि  के साहित्कार के सभी लक्षण लगे और फिर क्या, हम ने भी अपने आप को एक योग्य ,होनहार व  उत्कृष्ट  लेखिका मान लिया. अब मान  लेने में कोई बुराई या हर्जा तो नहीं है.हम स्वतंत्र है ,चाहे तो अपने आप को कैटरीना कैफ माने या एक उच्च कोटि का साहित्कार.हाँ तो हम ने अपने आप को साहित्कार मान  ही लिया (अब बाकि लोग यह बात  माने या ना माने,यह हमारा नहीं उन का सिरदर्द है) और लगे हाथ यह फैसला भी कर लिया क़ि हमे अपना शेष जीवन साहित्य को ही समर्पित कर देना चाहिए, साहित्य क्षेत्र को अब हम से वंचित नहीं रहना पड़ेगा.हम ने ढिंढोरा पीटना शुरू कर दिया क़ि हम लेखक बनने की राह पर है. शुरू शुरू में तो सब ठीक था.सब ने हमारा हौसला बढाया.कुछ लोगो ने हमें बुद्धिजीवी की श्रेणी मे खड़ा कर दिया.बड़ा अच्छा लगता है, जब लोग आप को बुद्धिजीवी समझने लगते हैं .क्योकि जब हम स्कूल मे पढ़ाते थे ,तब हमें बुद्धिजीवी के बजाए बुद्धूजीवी ही समझा जाता था.दो चार सज्जनो ने आग्रह किया "अपनी रचनाये हमे जरूर पढ़ाइयेगा ".यह सुन कर हम भाव विभोर हो गए.अंधे को क्या चाहिए दो आँख - लिखने वाले को क्या चाहिए पढ़ने वाले.

यह तो समय ने हमे  अहसास कराया कि- लोगो को लगता है ,लेखन कोई 'काम'  नहीं है,अक्सर लोग हम से पूछते, "क्या कर रही हो इन दिनों?" जब हम बताते हैं कि हम लिखते है, तो सुनने को मिलता है-"वह तो ठीक है ,पर 'काम' क्या करती हो ? लिखना कोई  काम नहीं है , बल्कि हाँबी  है. " इस वाक्य को सुन कर हम निरुतर रह जाते. 


घर वालो पर तो हमारा पूरा हक बनता है,उन्हें तो हम अपनी सारी रचनाए सुना कर व पढ़ा कर  कंठस्थ करा ही देते है.परन्तु हमारा मनना है , घर वालो के अलावा दूसरों को भी हमारी प्रतिभा जानने का सुअवसर मिलना चाहिए .सो हम ने शुरू कर दी, तलाश एक अदद हमे पढ़ने वाले की.सबसे पहले हमे याद आई उन सज्जनो की  जिन्होंने हमे भाव विभोर कर दिया था, यह कह  कर कि, "अपनी रचनाये हमे जरूर पढ़ाइयेगा " ,तो उन के पास हम अपनी पोथी लेकर पहुँच गए.स्नेह से उन लोगो ने हमारी रचनाए रख ली, परन्तु समय की कमी के कारण पढ़ नहीं पाए है.और हम अपनी सहनशीलता का परिचय देते हुवे अभी तक उन की प्रतिक्रिया की बाट जोह रहे है.हमारे दोस्तों मे से ज्यादातर के पास समय की कमी है.अफसोस कि बात है ,चाह के भी वो हमारी सुन्दर व उत्कृष्ट रचनाओ को पढ़ नहीं पाते.अब आप समझे गए ना कि यह सारा चक्कर समय की कमी का है.हमने ने तो शुरू में ही लिखा है,"खाली समय -यह तो भगवान की इच्छा से ही नसीब होता है".


फिर हमारा ध्यान हमारे मोहल्ले वालो पर गया,नए होने के कारण ना तो हम ज्यादा लोगो को जानते है, और ना ही हमे ज्यादा लोग जानते है.इने गिने से ही हमारी पहचान है.उन इने गिने मे से हमे अपनी नई सखी किरण मे "उम्मीद की किरण" नज़र आई.हम उसके पास जाने ही वाले थे कि देखा, वो स्वयं ही हमारे घर चली आई. इसे शुभ संकेत मान कर हमने अपनी एक रचना उसके सामने रख दी,हमारी इस नई सखी ने ना केवल हमारी रचना पढ़ी बल्कि उसपे चर्चा भी की और हमारी तारीफ भी. हमे यकीन हो गया कि अब हमारा   " पाठक तलाश अभियान " को पूर्णविराम लगाने का समय आ गया है.हमारी तलाश खत्म हुई.घर वालो के अलावा हमारी प्रतिभा व हुनर को पहचानने वाला आखिर भगवान ने हम तक पंहुचा ही दिया.अपने घर लौटते समय किरण ने हमे बताया की अगले दिन शाम की गाड़ी से वह और उस का परिवार गुजरात जा रहा है,वह तो हमे 'टाटा' बोलने आई थी.दरअसल कुछ दिनों पहले ही उसके पापा का तबादला गुजरात हो गया था,और क्योंकी हम ज्यादा घर के बहार निकलते नहीं और खुदको लेखन कार्य मे डुबो रखा है, तो हमे किरण के जाने का पता नहीं था.उसे विदा करते समय हमारे दिल पर क्या बीती ,बया करना मुश्किल है.

पर इन सब से हमारा हौसला नहीं टूटा,गीता मे लिखा है-"कर्म करते जाओ ,फल की चिंता मत करो".हम भी अपना कर्म (लेखन कार्य  ) करते जा रहे है .हम सकारात्मक सोच रखते है ,इस का प्रमाण है हमारी  एक रचना :- "आगे बढ़ते चलो" यदि आपने हमारी यह रचना नहीं पढ़ी तो अवश्य पढे (अपनी रचना का प्रचार प्रसार करना कोई गलत बात थोड़ी है?)

वैसे, यह हमारा निजी अनुभव है की लेखक नामक जीव से दुनिया के 80% लोग घबराते है(% ज्यादा भी हो सकती है पर कम नहीं ) कभी कभी तो लेखक खुद से घबराता है.जब की यह अहिंसा प्रिय ;अपनी ही दुनिया मे निमग्न ; किसी को भी नुकसान ना पहुचने वाला "बेचारा" जीव है .पता नहीं लोग इस जीव से दूर क्यों भागते है ? शायद इसीलिए क्योकि :-
1.वह आपको अपना मान कर, अपनी रचना सुनना/पढाना चाहता है 
2. फिर उस पर छोटी  सी चर्चा चाहता है
3. अपनी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया चाहता है 
4. आपसे तारीफ के दो शब्द चाहता है.
बस !!!!

हमारी तो भगवान से प्रार्थना है की हर लेखक के साथ उसे पढने वाले ज़रूर दे .
आमीन !
जी हाँ, अभी तक तलाश जारी है.........